ज्वेल थीफ मूवी रिव्यू: इतनी बेवकूफी भरी चोरी कभी नहीं देखी होगी

समय ताम्रकर

शनिवार, 26 अप्रैल 2025 (20:05 IST)
पठान, वॉर और बैंग-बैंग जैसी बड़े बजट की फिल्में बनाने वाले सिद्धार्थ आनंद को खुद 'ज्वेल थीफ' की स्क्रिप्ट पर उतना भरोसा नहीं था, जितना भरोसा मच्छर को नेट लगने के बाद भी काटने पर होता है। शायद यही वजह थी कि उन्होंने इसे सीधे ओटीटी पर पटक दिया। उन्हें पता था कि थिएटर में इसे देखने के लिए लोग पॉपकॉर्न भी छोड़कर भाग जाएंगे। शाहरुख खान और ऋतिक रोशन जैसे धाकड़ स्टार्स की जगह उन्होंने सैफ अली खान को उठा लिया, खुद प्रोड्यूसर बन बैठे और निर्देशन की जिम्मेदारी कूकी गुलाटी और रॉबी ग्रेवाल के भरोसे छोड़ दी, यानी खुद ने भी पूरी उम्मीद छोड़ दी।
 
नाम से ही लगा था कि इस फिल्म में कोई बहुत बड़ी चोरी दिखाई जाएगी। 'रेड सन' नाम के 500 करोड़ के हीरे को चुराना था, विदेशों में शूटिंग करनी थी, हीरो-हिरोइन को फाइव स्टार लाइफ में नहलाना था, महंगी शराब, चमचमाते कपड़े और स्वैग से दर्शकों को इम्प्रेस करना था। यानी दिखावे का फुल डोज सोचा गया था, बस कहानी लिखने का आइडिया शायद रास्ते में कहीं गिर गया।
 
कहानी में सिक्योरिटी सिस्टम की बड़ी-बड़ी बातें तो हैं, लेकिन उसे पार करना उतना आसान बना दिया गया है जितना बच्चे के लिए चॉकलेट चुराना। हीरो को हर चीज पहले से पता है, बिल्डिंग के कैमरे कब फेल होंगे, अंग्रेजों ने कब नाली बनाई थी, प्लेन कैसे खराब करना है, और राजदूत के बैग में हीरा कैसे छुपाना है। 
 
हीरो पासवर्ड चुराता है जैसे रास्ते से पड़ी हुई पेंसिल उठा ली हो। 10 अक्षरों वाला पासवर्ड, जिसके करोड़ों कॉम्बिनेशन बनते हैं, उसे वो ऐसे खोलता है जैसे मोबाइल का पैटर्न लॉक खोल रहे हों। गणितज्ञों और एआई को तो इस पर धक्का ही लग जाएगा!


 
इस्तांबुल से मुंबई तक हर लोकेशन उसके लिए इतनी फेमिलियर है जैसे मोहल्ले का गली-मोहल्ला। पुलिस इंस्पेक्टर भी पीछे पड़ा है, लेकिन उसे भी सारी जानकारी मोटा भाई के नाम के सहारे मिल जाती है, स्क्रिप्ट राइटर ने तो राइटिंग के नाम पर 'आशीर्वाद' दे दिया है।
 
जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे बेवकूफी का लेवल भी एस्केलेटर की स्पीड से बढ़ता जाता है। हद तो तब होती है जब विमान को इस्तांबुल के रनवे की जगह सीधा शहर के बीचों-बीच उतरवा लिया जाता है। वाह भाई। 
 
हीरो, विलेन की बीवी के साथ उसी के बंगले में फ्लर्ट कर रहा है और विलेन और उसके चमचे आंखें मूंदे बैठे हैं। 500 करोड़ के हीरे का मालिक भी ऐसा टपोरी टाइप है, जो हीरे को ऐसे लेकर घूमता है जैसे सड़क किनारे से खरीदा हुआ पत्थर हो।
 
कहानी में सारे काम बिना किसी अड़चन के हो जाते हैं, न सिक्योरिटी का डर, न पुलिस का डर, न लॉजिक का डर। थ्रिल और टेंशन, जो इस तरह की हीस्ट फिल्मों का असली मसाला होता है, यहां पर नदारद है। यानी बिना नमक वाली खिचड़ी। 
 
निर्देशक पूरी मेहनत फिल्म को रिच दिखाने में लगाते हैं, लेकिन कंटेंट को पानी नहीं देते। यानी सोने का कवर चढ़ा कर भी अंदर से फिल्म खोखली है।
 
सैफ अली खान को देखकर लगता है कि वे खुद भी स्क्रिप्ट की हालत देखकर 'हाय राम' कर चुके थे। उनके लुक पर भी उतना ध्यान नहीं दिया गया। जयदीप अहलावत ने वजन जरूर घटाया है, लेकिन किरदार का वजन स्क्रीन पर नहीं बढ़ा पाए।
 
कुल मिलाकर 'ज्वेल थीफ - द हाइस्ट बिगिन्स' वो फिल्म है, जिसे देखकर आप भी चिल्ला सकते हैं, "भाई, मेरा टाइम लौटा दो।\"
 
रेटिंग : 1/5

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