अस्मा जहांगीर को नम आंखों से दी विदाई

बुधवार, 14 फ़रवरी 2018 (00:34 IST)
लाहौर। पाकिस्तान की जानीमानी मानवाधिकार कार्यकर्ता अस्मा जहांगीर के जनाजे की नमाज यहां गद्दाफी स्टेडियम में अदा की गई, जिसमें हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए और मानव अधिकारों की इस सच्ची पैरोकार को नम आंखों से आखिरी विदाई दी।


अस्मा (66) का बीते रविवार की रात दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उनकी जनाजे की नमाज में कई सामाजिक कार्यकर्ता, वकील, न्यायाधीश, सरकारी अधिकारी, जानीमनी हस्तियां और आम लोग शामिल हुए। जनाजे की नमाज में बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल हुईं जो पाकिस्तान जैसे रूढ़ीवादी देश के लिए असामान्य बात है। अस्मा को बैदियां रोड स्थित उनके परिवार के फार्महाउस पर सुपुर्द-ए-खाक किया गया।

जनवरी, 1952 में लाहौर में पैदा हुईं अस्मा ने ह्यूमन राइट्स ऑफ पाकिस्तान की सह स्थापना की और इसकी अध्यक्षता भी संभाली। वह सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की अध्यक्ष भी रहीं। वर्ष 1978 में पंजाब विश्वविद्यालय से एलएलबी डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकील के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की।

वह लोकतंत्र की पुरजोर समर्थक बनीं और उन्हें पाकिस्तान में सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले जियाउल हक के सैन्य शासन के खिलाफ मूवमेंट फोर रिस्टोरेशन ऑफ डेमोक्रेसी में भाग लेने को लेकर 1983 में जेल में डाल दिया गया। वह 1986 में जिनेवा गई और वहां वह ‘डिफेंस फोर चिल्ड्रेन इंटरनेशनल’ की उपाध्यक्ष बनीं। वह 1988 में पाकिस्तान लौट आई।

उन्होंने इफ्तिकार चौधरी को पाकिस्तान का प्रधान न्यायाधीश बहाल करने के लिए प्रसिद्ध वकील आंदोलन में सक्रिय हिस्सेदारी की। पाकिस्तान में ‘लापता व्यक्तियों’ का मुद्दा वह ताउम्र पूरी शिद्दत से उठाती रहीं। वह न्यायिक सक्रियता को लेकर सुप्रीम कोर्ट की आलोचक थीं तथा उन्होंने पिछले साल नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री के पद के लिए अयोग्य ठहराने के लिए शीर्ष अदालत की आलोचना की थी।

उन्हें राइट लाइवलीहुड पुरस्कार, फ्रीडम पुरस्कार, हिलाल ए इम्तियाज और सितारा ए इम्तियाज पुरस्कार मिला था। अस्मां को 2007 में तत्कालीन सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ की सरकार ने गिरफ्तार किया था। उन्होंने 2012 में दावा किया था कि शीर्ष खुफिया एजेंसी आईएसआई से उनकी जान को खतरा है। (भाषा)

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी