अमेरिका चीन टैरिफ संग्राम: ट्रंप के टैरिफ युद्ध से घबराए चीन ने भारत से मांगा समर्थन

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

गुरुवार, 10 अप्रैल 2025 (14:00 IST)
US China Tariff war : 10 अप्रैल, 2025 को वैश्विक व्यापार के मैदान में एक नया अध्याय शुरू हुआ। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन को छोड़कर शेष दुनिया पर बढ़े हुए टैरिफ को 90 दिनों के लिए टाल दिया, लेकिन चीन के खिलाफ टैरिफ को 125% तक बढ़ा दिया। इसके जवाब में, चीन ने अमेरिकी सामानों पर 84% शुल्क लगाने का ऐलान किया। यह टैरिफ संग्राम सिर्फ दो महाशक्तियों की आपसी लड़ाई नहीं है, बल्कि इसका असर वैश्विक व्यापार, रोजगार और लोगों की जिंदगी पर पड़ रहा है। ALSO READ: टैरिफ पर क्यों बैकफुट पर आए ट्रंप, क्या है मामले का अल्ट्रारिच कनेक्शन?
 
दूसरी ओर, चीन ने इसे टैरिफ का दुरुपयोग करार देते हुए भारत जैसे देशों से समर्थन की अपील की। नई दिल्ली में चीनी दूतावास के प्रवक्ता यू जिंग ने कहा, 'चीन और भारत के व्यापारिक रिश्ते एक-दूसरे के पूरक हैं। अमेरिका की नीतियां ग्लोबल साउथ के विकास को नुकसान पहुंचा रही हैं, और हमें मिलकर इसका मुकाबला करना चाहिए।' यह बयान दर्शाता है कि चीन इस संग्राम में नए सहयोगी तलाश रहा है।
 
टैरिफ की शुरुआत और ट्रम्प का 'ग्रेट अमेरिका' वादा: डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका को फिर से 'महान' बनाने के लिए टैरिफ को अपनी प्रमुख रणनीति बनाया। उनका दावा था कि विदेशी आयात पर भारी शुल्क से अमेरिकी उद्योग मजबूत होंगे और व्यापार घाटा घटेगा। लेकिन 2 अप्रैल, 2025 को शुरू हुए इस व्यापारिक युद्ध ने जल्द ही अमेरिकी अर्थव्यवस्था को हिलाकर रख दिया। शेयर बाजार में भारी गिरावट आई और ट्रम्प के अपने समर्थकों को भी अरबों डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा। 'रायटर्स' की रिपोर्ट के मुताबिक, इस अस्थिरता ने ट्रम्प को मजबूर किया कि वे 9 अप्रैल को 90 दिनों के लिए वैश्विक टैरिफ युद्ध में एकतरफा ठहराव की घोषणा करें।
 
हालांकि, चीन के खिलाफ टैरिफ को 104% से बढ़ाकर 125% कर दिया गया, जो तुरंत लागू हो गया। दूसरी ओर, चीन ने पहले के 34% शुल्क को बढ़ाकर 84% कर दिया, जो 11 अप्रैल, 2025 से प्रभावी होगा। अमेरिका और चीन के बीच सालाना 585 अरब डॉलर का व्यापार होता है, जिसमें अमेरिका को 375 अरब डॉलर का घाटा सहना पड़ता है। यह आंकड़ा इस टकराव की गहराई को उजागर करता है। ALSO READ: अमेरिका-चीन में तेज हुआ ट्रेड वॉर, डोनाल्ड ट्रंप ने ड्रेगन पर लगाया 125% टैरिफ, 90 देशों को दी राहत
 
वैश्विक अर्थव्यवस्था पर छाया संकट : इस सप्ताह वैश्विक शेयर बाजारों से ट्रिलियन डॉलर की पूंजी साफ हो गई। बड़े अमेरिकी बैंकों के शेयरों में प्री-मार्केट गिरावट देखी गई, और तेल की कीमतें चार साल के निचले स्तर पर पहुंच गईं। एप्पल जैसी कंपनियां, जो चीन पर उत्पादन के लिए निर्भर हैं, पहले ही नुकसान झेल रही हैं। उनके शेयरों में लगातार कमी आ रही है।

हालांकि ट्रंप द्वारा 75 देशों को टैरिफ पर 90 दिन की राहत देने के बाद अमेरिकी शेयर बाजार एक बार फिर चहक उठे। नैस्डेक 10.3 फीसदी बढ़ गया। डाओ जोंस में 7.1 और एसएंडपी 500 में 9.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। टेस्ला के शेयर तो एक ही दिन में 20 फीसदी बढ़ गए। देखते ही देखते अमेरिकी शेयर बाजार का मूल्यांकन 3.1 लाख करोड़ डॉलर बढ़ गया।  
 
मुद्रा बाजार में उथल-पुथल: टैरिफ की घोषणा के बाद भारतीय रुपया 0.4% कमजोर होकर 86.65 पर पहुंच गया। चीनी युआन और कई एशियाई मुद्राएं भी प्रभावित हुईं। नोमुरा बैंक के अर्थशास्त्री टिंग लू ने चेतावनी दी कि यह टकराव "महंगा और अभूतपूर्व" है, जो उभरते बाजारों को तबाह कर सकता है।
 
उपभोक्ता वस्तुओं पर असर: चीन से आने वाले मोबाइल, बैटरी और खिलौनों की कीमतें अमेरिका में बढ़ेंगी। अमेरिकी सोयाबीन, दवाइयां और पेट्रोलियम उत्पाद चीन में महंगे हो जाएंगे। ALSO READ: Tariff War : चीन ने अमेरिका पर लगाया 84% टैरिफ; ट्रंप को दे दी खुली चेतावनी- झुकेंगे नहीं
 
ट्रम्प की नीति और चीन का पलटवार: ट्रम्प ने दावा किया कि 75 से अधिक देशों ने अमेरिका से संपर्क कर बातचीत की इच्छा जताई, जिसके चलते यह 90 दिनों का ठहराव संभव हुआ। लेकिन चीन पर टैरिफ बढ़ाने का कारण उन्होंने अनुचित व्यापारिक व्यवहार और वैश्विक बाजारों के प्रति असम्मान बताया। 
 
अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने फॉक्स बिजनेस पर कहा कि चीन की अर्थव्यवस्था आधुनिक इतिहास में सबसे असंतुलित है। यह टकराव उनके लिए भारी पड़ेगा। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह दोनों देशों के लिए नुकसानदेह हो सकता है, क्योंकि ये मिलकर वैश्विक जीडीपी का 43% हिस्सा बनाते हैं।
 
भारत के सामने चुनौतियां
दवा उद्योग पर खतरा: ट्रम्प ने फार्मा आयात पर भारी टैरिफ की चेतावनी दी है। अगर 90 दिनों बाद यह लागू हुआ, तो भारत के 7 अरब डॉलर से अधिक के दवा निर्यात पर संकट आएगा।
मुद्रा और महंगाई: रुपये की कमजोरी से आयात महंगा होगा, जिससे भारत में महंगाई बढ़ सकती है।
अगर चीन अपना सस्ता स्टील भारत में डंप करता है, तो स्थानीय उद्योगों को नुकसान होगा।
कूटनीतिक संतुलन: चीन भारत से हाथ मिलाना चाहता है, लेकिन अमेरिका भी भारत का बड़ा साझेदार है। ऐसे में भारत को सतर्कता से कदम उठाने होंगे।
 
भविष्य के संकेत और संभावनाएं
अमेरिका पर प्रभाव: चीन से आने वाले सामानों की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे आम अमेरिकी प्रभावित होंगे। अगर चीन जर्मेनियम और गैलियम जैसी धातुओं की आपूर्ति रोकता है, तो तकनीकी क्षेत्र में संकट गहराएगा।
चीन पर असर: अमेरिकी उत्पादों की कीमतें बढ़ने से खाद्य और ऊर्जा क्षेत्र में दिक्कतें होंगी।
वैश्विक मंदी का जोखिम: दोनों देशों की मंदी पूरी दुनिया को प्रभावित कर सकती है।

कई जानकार मानते हैं कि यह टैरिफ संग्राम अब व्यापार से आगे बढ़कर तकनीकी वर्चस्व (एआई, चिप्स) और वैश्विक शक्ति की लड़ाई बन गया है। ट्रम्प की नीतियों से उनके समर्थकों में भी नाराजगी बढ़ रही है, जैसा कि हाल के विरोध प्रदर्शनों से दिखा।
 
अमेरिका और चीन के बीच चल रहा यह टैरिफ संग्राम एक जटिल आर्थिक और भू-राजनीतिक चुनौती है। 90 दिनों का ठहराव एक सांसत हो सकता है, लेकिन अगर बातचीत नाकाम रही, तो वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहरा संकट आ सकता है। भारत जैसे देशों को इस तूफान में अपनी राह सावधानी से चुननी होगी। क्या ट्रम्प का ग्रेट अमेरिका सपना हकीकत बनेगा, या यह दुनिया को मंदी की ओर ले जाएगा? इसका जवाब भविष्य के गर्भ में छिपा है।
edited by : Nrapendra Gupta 

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