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माँ पर एक मधुर लावणी छंद गीत : माँ गीता सी पावन होती
Webdunia
poem on mothers day 2023 in hindi
सुषमा शर्मा
सृजन पंक्ति - माँ गीता सी पावन होती
गीले में जननी खुद सोती,रक्षा बालक की करती।
माँ गीता सी पावन होती,निश्छल नदियाँ ज्यों बहती।।
प्रथम पाठशाला बन देखो, सकल ज्ञान नित हृद बोती।
शोच कर्म का पाठ पढ़ाती, सहज देह को जो धोती।।
उँगली पकड़े सुत की चलती, शुद्ध भाव मन जो भरती।
माँ गीता सी पावन होती, निश्छल नदियाँ ज्यों बहती।।
खेल खिलौने ले माटी के, सीख कर्म दे भावन है।
आँगन बैठी गीत सिखाती, फटा सुधारे छाजन है।।
क्रोध कभी जब मैया करती,आँचल से मुख है ढकती।
माँ गीता सी पावन होती,निश्छल नदियाँ ज्यों बहती।।
नजर डिठौना लगा भाल पे, काजल नैना में डाले।
दूध-भात का लिए कटोरा, खिला-पिला कर जो पाले।।
चिड़िया मैना दिखा-दिखा के,कविता नित नव जो रचती।
माँ गीता सी पावन होती, निश्छल नदियाँ ज्यों बहती।।
अँखियन में जब निंदिया आती, पलकें होती हैं भारी।
मंद-मंद सी माँ मुस्काती, जाती है हृद से वारी।।
लोरी गाकर मात सुलाती,सिर पर हाथ फिरा रखती।
माँ गीता सी पावन होती, निश्छल नदियाँ ज्यों बहती।।
निरखे हर्षित हो मुखड़े को,बेटा चंदा सा प्यारा।
भाल-गाल को चुम्बन देती,कहती अँखियन का तारा।
जीवन करती अर्पण देखो, पीर सभी की माँ सहती।
माँ गीता सी पावन होती,निश्छल नदियाँ ज्यों बहती।।
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