मुख्यमंत्री कमलनाथ को ले डूबा ‘अतिआत्मविश्वास’

वृजेन्द्रसिंह झाला
मंगलवार, 10 मार्च 2020 (16:15 IST)
‘महाराज’ यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस से बगावत के बाद मध्यप्रदेश से कमलनाथ की एक साल पुरानी सरकार का जाना लगभग तय हो गया है। इसकी पुष्टि लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी की टिप्पणी से भी होती है, जिसमें उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार का बचना मुश्किल है।
 
इसमें कोई संदेह नहीं इस पूरे घटनाक्रम के पीछे भाजपा की पूरी भूमिका रही है, लेकिन इसके लिए कहीं न कहीं कमलनाथ का ‘अतिआत्मविश्वास’ भी कम जिम्मेदार नहीं है। दरअसल, लोकसभा चुनाव में गुना संसदीय सीट से सिंधिया की हार के ‍बाद जिस तरह से उन्हें हाशिए पर डाल दिया गया था उससे वे खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे थे।
 
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मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे सिंधिया की राह में कमलनाथ आडे गए और वे हाथ मलते रह गए। उस समय तो उन्हें किसी तरह मना लिया गया था, लेकिन सिंधिया को करारा झटका तब लगा जब वे परंपरागत गुना सीट से लोकसभा चुनाव हार गए, जिसकी उन्होंने सपने में भी कल्पना की थी। अंतत: उनकी उम्मीदें मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर आकर टिक गई थीं, लेकिन उन्हें यहां भी निराशा हाथ लगी।
सिंधिया को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का काफी करीबी माना जाता है, लेकिन इस पूरे मामले में केन्द्रीय नेतृत्व की चुप्पी से यह मामला संभलने की बजाय और बिगड़ गया। यदि समय रहते गांधी परिवार ने इस मामले में दखल दिया होता तो शायद स्थितियां इतनी नहीं बिगड़तीं।
 
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पिछले दिनों मुख्यमंत्री कमलनाथ और सिंधिया के बीच की लड़ाई उस समय सड़क पर आ गई थी जब सिं‍धिया ने अपनी ही सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरने की चुनौती दी थी। जवाब में कमलनाथ ने भी कहा था कि उतरते हैं तो जाएं। बस, यहीं से मामला दिन-ब-दिन और बिगड़ता चला गया और उसकी परिणति सिंधिया और उनके समर्थक मंत्री-विधायकों के कांग्रेस से इस्तीफे के रूप में हुई।
 
राज्य में अल्पमत की सरकार चला रहे मुख्यमंत्री कमलनाथ सुरेन्द्रसिंह शेरा जैसे निर्दलीय विधायकों को तो साधने की पूरी कोशिश कर रहे थे, लेकिन अपनी ही पार्टी के दिग्गज नेता सिंधिया अपेक्षित ‘सम्मान’ देना भूल गए।
 
सत्ता समीकरणों को साधने के लिए कमलनाथ चाहते तो सिंधिया को प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष बनाने में बड़ी भूमिका निभा सकते थे, लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए। कमलनाथ का यह रवैया न सिर्फ उनके लिए बल्कि पार्टी के लिए भी काफी नुकसानदेह साबित हुआ।
 
सिंधिया ने कांग्रेस की अंतरिम अध्‍यक्ष सोनिया गांधी को लिखी चिट्‍ठी में अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए लिखा है कि पिछले 18 साल से मैं कांग्रेस का सदस्य रहा हूं, लेकिन अब आगे बढ़ने का समय आ गया है। आप जानती हैं कि पिछले साल से ही मैं इससे बच रहा था। शुरुआत से ही मेरा उद्देश्य देश और मेरे राज्य के लोगों की सेवा करना रहा है। मेरा मानना है कि इस पार्टी में रहते हुए अब मैं यह नहीं कर सकता हूं। अब मुझे आगे बढ़कर नई शुरुआत करनी चाहिए। मैं आपका और पार्टी के साथियों को धन्यवाद देना चाहूंगा कि आपने मुझे देश की सेवा करने का प्लेटफॉर्म दिया।
 
इसमें कोई शक नहीं कि मध्यप्रदेश के आधा दर्जन से ज्यादा ‍जिलों में जनाधार रखने वाले सिंधिया का कांग्रेस छोड़ना देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए काफी नुकसानदेह साबित होने वाला है, लेकिन फिलहाल 15 साल बाद मिली मध्यप्रदेश की सत्ता कांग्रेस के हाथ से फिसलती दिख रही है और राज्य में एक बार फिर शिवराज सरकार की आहट शुरू हो गई है।

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