समुद्र तल से 6,500 फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर स्थित इस सेक्टर में घने जंगल आतंकियों के लिए बहुत फायदेमंद साबित होते हैं। वे आसानी से इसमें छिप जाते हैं। इसके अलावा यहां का मौसम और इलाके की बनावट भी आतंकियों के पक्ष में जाती है। यहां कुपवाड़ा शहर से महज 50-80 किमी की दूरी पर भारत और पाकिस्तान के बंकर्स एक-दूसरे के काफी करीब हैं।
सूत्रों के मुताबिक, आतंकी कुपवाड़ा व लोलाब घाटी पहुंचने के लिए घुसपैठ के कई रास्तों का इस्तेमाल करते हैं। भारतीय सेना की ओर से की गई पहली सर्जिकल स्ट्राइक के बाद सीजफायर उल्लंघन के मामले में काफी बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2020 में 8 नवम्बर को सेना के कैप्टन समेत चार जवान इसी सेक्टर में शहीद हुए थे। उसके बाद भी इसी सेक्टर में घुसपैठ के कई प्रयास हो चुके हैं।
अधिकारी मानते हैं कि एलओसी पर स्थित मच्छेल हमेशा से सेना के लिए सिरदर्द वाला इलाका रहा है। मच्छेल कुपवाड़ा में स्थित है और लोलाब घाटी के करीब है। वर्ष 2019 में सेना के जवान मनदीप सिंह के शव के साथ मच्छेल में ही पाकिस्तान से आए आतंकियों ने बर्बर व्यवहार किया था।
सूत्रों के बकौल, मच्छेल से ही सबसे अधिक आतंकी दाखिल होने की कोशिशों में लगे रहते हैं। नेशनल काउंटर टेररिज्म अथॉरिटी की ओर से जानकारी दी गई है कि पिछले 3 सालों के अरसे में अकेले मच्छेल में आतंकियों ने 100 बार से अधिक घुसपैठ की कोशिशें की हैं। मच्छेल काफी मुश्किल इलाका है क्योंकि यहां पर घना जंगल है और मौसम हमेशा खराब रहता है।
मच्छेल 6,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। पाक से आने वाले आतंकी इसी रास्ते का प्रयोग जम्मू कश्मीर में पहुंचने के लिए करते हैं। घना जंगल अक्सर सेना और सुरक्षाबलों के लिए मुश्किलें पैदा करता है। पाक के आतंकी जब कुपवाड़ा के मच्छेल में आते हैं तो इस घने जंगल को अपने छिपने के लिए प्रयोग करते हैं।
कुपवाड़ा के मच्छेल से एलओसी सिर्फ 50 से 80 किमी की दूरी पर ही है। सुरक्षा एजेंसियों ने हंडवाड़ा में घुसपैठ के कई ठिकानों का पता लगाया था। काउबोल गली, सरदारी, सोनार, केल, राट्टा पानी, शार्दी, तेजियान, दुधीनियाल, काटवाड़ा, जूरा और लिपा घाटी के तौर पर इनकी पहचान की गई थी। ये आतंकियों के लिए सबसे सक्रिय रास्ते हैं और वे इनका प्रयोग कुपवाड़ा, बांडीपोरा और बारामुल्ला जिले में दाखिल होने के लिए करते हैं। आतंकी शार्दी, राट्टा पानी, केल, तेजियान और दुधीनियाल के रास्ते से एलओसी पार करते हैं और फिर मच्छेल में दाखिल होते हैं।
दिसम्बर 2018 में मच्छेल में ही 41 राष्ट्रीय राइफल्स के कमांडिंग आफिसर कर्नल संतोष महादिक आतंकियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हो गए थे। आतंकी हाइहामा और कलारुस के घने जंगलों में छिपे थे और उनकी तलाश शुरू की गई। इस स्पेशल ऑपरेशन में 700 सैनिक और स्पेशल फोर्सेज के पैराट्रूपर्स की मदद तक ली गई थी। कई विदेशी आतंकी कुपवाड़ा में मौजूद हैं और वह मच्छेल के जरिए घाटी में दाखिल होने की कोशिशें करते हैं।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि कई ऐसे स्थान हैं जहां आतंकी या पाकिस्तानी सैनिक हाजी नाका से मच्छेल तक आसानी से भारतीय सैनिकों की नजर बचाकर घुस जाते हैं। अगस्त 2019 में भी बीएसएफ के तीन जवान इस इलाके में शहीद हो गए थे। भारत के आखिरी गांव से महज 6 किलोमीटर की दूरी पर एलओसी है और दूसरी तरफ केल है, जिसके बारे में अधिकारियों का कहना है कि वह आतंकियों का सबसे बड़ा लान्चपैड है।
वर्ष 2010 में मच्छेल उस समय चर्चा में आया था, जब एक मुठभेड़ में सेना ने तीन ग्रामीणों को मार दिया था। इसके बाद कश्मीर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे और सेना ने मुठभेड़ की जांच का आदेश दिया था। जांच में मुठभेड़ फर्जी निकली थी और एक पूर्व कमांडिंग आफिसर समेत 6 जवानों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।