कौन से योगासन करने से शरीर की जमा गंदगी होगी बाहर?

अनिरुद्ध जोशी
21 June yoga day 2023 : शरीर में सर्वप्रथम गंदगी तीन जगह पर जमती है। पहला आहार नाल में और दूसरा पेट में और तीसरा आंतों में। इन तीनों जगह यदि गंदगी ज्यादा समय तक बनी रही तो यह फैलेगी। तब यह किडनी में, फेंफड़ों में और हृदय के आसपास भी जमने लगेगी। अंत में यह खून को गंदा कर देगी। अत: इस गंदगी को साफ करना जरूरी है।
 
आहार पर दें ध्यान : हम जो खाते हैं उसी से गंदगी पैदा होती है। हम क्या खा रहे हैं इस पर ध्यान देने की जरूरत है। हम 2 तरह के खाद्य पदार्थ खाते हैं पहला वह जो हमें सीधे प्रकृति से प्राप्त होता है और दूसरा वह जिसे मानव ने निर्मित किया है। प्रकृति से प्राप्त फल और सब्जियां हैं। फल को पचने में 3 घंटे लगते हैं। सब्जियों को पचने में 6 घंटे लगते हैं। 
 
उपरोक्त दोनों के अलावा मानव द्वारा पैदा किया गया, बनाया या उत्पादित किए गए खाद्य पदार्थों में आते हैं- अनाज, दाल, चना, चावल, दूध, मैदा, सोयाबीन आदि और इन्हीं से बने अन्य खाद्य पदार्थ। जैसे ब्रेड, सेंडविच, चीज, बर्गर, चीप्स, पापड़, आदि। इन सभी पदार्थों को पचने में 18 घंटे लगते हैं। 
 
गंदगी को बहार निकालने के पहले छोड़ना होंगे ये पदार्थ:- चाय, कॉफी, दूध, कोल्ड्रिंक, मैदा, बेसन, बैंगन, समोसे, कचोरी, पोहे, पिज्जा, बर्गर आदि जंग और फास्ट फूड।
 
खाना शुरु करें:- ज्यादा से ज्यादा फायबरयुक्त भोजन। 
पीना शुरु करें:- चकोतरा या नींबू का रस।
 
अब आजमाएं ये योग क्रिया:-  उड्डियान, नौली, धौति कर्म, बस्ती क्रिया, गणेश क्रिया, शंख प्रक्षालन और वमन क्रिया।
 
क्रिया नहीं कर सकते हैं तो करें ये योगासन:- मलासन, वज्रासन, वक्रासन, सर्पासन, कटिचक्रासन, विपरीतकरणी आसन।
उपरोक्त आसन नहीं कर सकते हैं तो करें सूर्य नमस्कार की 12 स्टेप:-
 
- दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों। नेत्र बंद करें। ध्यान 'आज्ञा चक्र' पर केंद्रित करके 'सूर्य भगवान' का आह्वान 'ॐ मित्राय नमः' मंत्र के द्वारा करें।
 
- श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे 'विशुद्धि चक्र' पर केन्द्रित करें।
 
- तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।
 
- इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा 'विशुद्धि चक्र' पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।
 
- श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान 'सहस्रार चक्र' पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।
 
- श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठा दें। श्वास छोड़ दें। ध्यान को 'अनाहत चक्र' पर टिका दें। श्वास की गति सामान्य करें।
 
- इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधे कर दें। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। मूलाधार को खींचकर वहीं ध्यान को टिका दें।
 
- यह स्थिति - पांचवीं स्थिति के समान
 
- यह स्थिति - चौथी स्थिति के समान
 
- यह स्थिति- तीसरी स्थिति के समान
 
- यह स्थिति - दूसरी स्थिति के समान
 
- यह स्थिति - पहली स्थिति की भाँति रहेगी।

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