झारखंड में सियासी संकट का सामना कर हेमंत सोरेन के अगले कुछ दिन अहम होने वाले हैं। मौजूदा वक्त में सबकी नजरें मुख्यमंत्री के अगले क़दम पर टिकी हैं। झारखंड की सियासी बिसात उन 81 विधायकों के इर्द-गिर्द घूम रही है जिनका बहुमत फ़िलहाल मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ है। यहां बहुमत के लिए कुल 41 विधायकों के समर्थन की ज़रूरत होती है।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पिछले 29 दिसंबर को अपनी सरकार की चौथी सालगिरह मनाई है। वे झारखंड के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री बन गए हैं जिन्हें लगातार 4 साल तक इस पद पर रहने का मौका मिला है।
यही एक बात है जिसे हेमंत सोरेन भुनाना चाहते हैं। वे कहते रहे हैं कि 'उन्हें गिरफ़्तार करने की साज़िशें रची जा रही हैं लेकिन वे इससे नहीं डरते। क्योंकि, वे शिबू सोरेन के बेटे हैं और संघर्षों से उनके परिवार का पुराना नाता है।'
उन्होंने अपनी कई जनसभाओं में यह सवाल उठाया कि आख़िर क्या वजह है, जो कोई भी आदिवासी मुख्यमंत्री यहां अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता। वे इसके लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को ज़िम्मेदार ठहराते रहे हैं।
ईडी से आर-पार की लड़ाई
हेमंत सोरेन यह भी कहते रहे हैं कि 'साल 2019 में उनके शपथ लेने के तुरंत बाद से उनकी सरकार गिराने की कोशिशें की जा रही हैं और बीजेपी के नेता इसके लिए तरह-तरह की साज़िशें रच रहे हैं। उनपर अनर्गल आरोप लगाए जाते रहे हैं और कहीं से सफलता नहीं मिलने पर उनके पीछे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अफ़सरों को लगा दिया गया है।'
इस बीच उन्होंने वैसे कई निर्णय लिए, जो सीधे-सीधे उनके वोटरों को टारगेट करते हैं। 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति का विधेयक, मॉब लिंचिंग रोकथाम से संबंधित विधेयक, निजी सेक्टर की नियुक्ति में भी झारखंड के लोगों के लिए आरक्षण, आदिवासियों और दलितों के लिए 50 की उम्र से ही वृद्धावस्था पेंशन की योजना, राज्यकर्मियों के लिए पुरानी पेंशन योजना की बहाली जैसे निर्णय इसके उदाहरण हैं।
इसी दौरान ईडी के सात समन के बावजूद वे पूछताछ के लिए उपलब्ध नहीं हुए। दो जनवरी की दोपहर ईडी को भेजे अपने हालिया पत्र में उन्होंने कथित तौर पर ईडी के समन को ही ग़ैरक़ानूनी बता दिया। साथ ही यह भी आरोप लगाया कि अपने पत्रों को मीडिया में लीक कर ईडी उनका मीडिया ट्रायल करा रही है। यह उनकी छवि धूमिल करने की कोशिश है।
सत्तारूढ़ गठबंधन की बैठक में क्या होगा?
हेमंत सोरेन ने यह भी लिखा है कि वे एक बार ईडी की पूछताछ में शामिल होकर अपनी संपत्ति की जानकारी दे चुके हैं। यह वैध तरीक़े से अर्जित की गई है। इसलिए अब कुछ भी जानना हो, तो पत्र के माध्यम से पूछा जा सकता है। उन्होंने ईडी पर पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर करने के आरोप भी लगाए हैं।
ईडी अब उनसे पूछताछ के लिए कोर्ट का सहारा ले सकती है या सीधे उनकी गिरफ़्तारी के लिए वारंट की मांग कर सकती है। ईडी ने अपनी 7वीं चिट्ठी को अंतिम समन करार दिया था। ऐसे में हेमंत सोरेन इस पूरी प्रक्रिया का सियासी लाभ लेने की कोशिशें करेंगे।
जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी के विधायकों की तीन जनवरी की शाम होने वाली बैठक में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन यह सारी बात विधायकों के समक्ष आधिकारिक तौर पर रखेंगे और उनसे रायशुमारी कर अगली रणनीति तय की जाएगी। इस बैठक की अध्यक्षता मुख्यमंत्री स्वयं करेंगे। तय कार्यक्रम के मुताबिक़, इसमें शिबू सोरेन के उपस्थित नहीं होंगे। इसमें नेतृत्व परिवर्तन का निर्णय लिया जा सकता है।
हेमंत सोरेन के विकल्प
राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक़ मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधायक दल पर मजबूत पकड़ है। इसलिए विधायक उन्हें किसी भी फ़ैसले के लिए अधिकृत कर सकते हैं।
उनके पास कुछ और विकल्प भी हैं-
1. हेमंत सोरेन इस बैठक में अपने इस्तीफ़े की पेशकश कर सकते हैं, क्योंकि उन्हें ईडी से क़ानूनी लड़ाई लड़नी है। वे चाहें तो पद पर बने रहकर भी यह काम कर सकते है। ऐसा परिस्थिति में वे तबतक पद पर बने रहना चाहेंगे, जबतक कि ईडी उन्हें गिरफ़्तार करने की प्रक्रिया में नहीं जाए।
2. वे अपने उत्तराधिकारी के बतौर कल्पना सोरेन के नाम की पेशकश कर सकते हैं, बशर्ते उन्होंने शिबू सोरेन की सहमति मिल गई हो। ज़ाहिर है कि जेएमएम अध्यक्ष शिबू सोरेन की सहमति के साथ ही उन्हें परिवार में भी सबकी सहमति हासिल हो जाएगी।
अभी उनकी बड़ी भाभी सीता सोरेन और छोटे भाई बसंत सोरेन भी विधायक हैं। ऐसे में परिवार की एकजुटता उनकी पहली कोशिश होगी। हालांकि, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक एजेंसी से बातचीत में अपनी पत्नी कल्पना सोरेन के निकट भविष्य में चुनाव लड़ने की संभावनाओं को ख़ारिज कर दिया था। उन्होंने इसे बीजेपी द्वारा गलत नैरेटिव बनाने की कोशिश करार दिया था।
3. कल्पना सोरेन के नाम को शिबू सोरेन की हरी झंडी नहीं मिलने की स्थिति में वे अपने पिता शिबू सोरेन का नाम ही अपने उत्तराधिकारी के तौर पर पेश कर सकते हैं।
4. अंतिम विकल्प के तौर पर वे पार्टी के ही किसी वरिष्ठ विधायक को मुख्यमंत्री बनाने की पेशकश कर सकते हैं। इसके लिए उनके मंत्रिमंडल में शामिल एक महिला मंत्री और एक वरिष्ठ विधायक के नामों की चर्चा भी जेएमएम खेमे में है। इनमें से किसी एक को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है।
हालांकि, हेमंत सोरेन ऐसा करेंगे, इसकी संभावना कम है।
जेएमएम के एक विधायक ने बीबीसी से कहा कि 'इसकी दो वजहें हैं। पहली तो यह कि सोरेन परिवार के अलावा दूसरे किसी नाम पर सहमति बना पाना मुश्किल होगा। दूसरी वजह यह कि बिहार में नीतीश कुमार- जीतन राम मांझी प्रकरण के बाद कोई भी नेता रैंडम नामों पर सोचने से परहेज़ करेगा। हेमंत सोरेन भी यह रिस्क नहीं लेंगे क्योंकि उनके नेतृत्व में जेएएम ने पिछले चुनाव में अब तक की सबसे अधिक सीटें हासिल की थी।'
क्या मिलेगा सहयोगी दलों का समर्थन?
हेमंत सोरेन इस नज़रिये से मजबूत दिख रहे हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर के सकारात्मक बयानों के बाद मीडिया से पहली बार मुख़ातिब झारखंड कांग्रेस के प्रभारी गुलाम अहमद मीर ने कहा कि झारखंड के लोग ईडी से डरने वाले नहीं हैं।
गुलाम अहमद मीर ने कहा, 'ईडी-वीडी वहीं जा रही है, जहां चुनाव होने वाले हैं। वे जनता के ताक़तवर आदमी को टारगेट कर रहे हैं।'
'कई सारे मामलों में ईडी ने जिन लोगों को टारगेट किया और जिन्होंने प्रेशर में रंग बदल दिया, वे उपमुख्यमंत्री भी हुए अगले दिन। झारखंड में राजनीतिक लोग खासकर जेएमएम और कांग्रेस के लोग बहादुर लोग हैं। वे इन चुनौतियों को फेस करेंगे और पीछे नहीं हटेंगे। जनता उनके साथ में है। उन्होंने जनता के लिए काम किया है। ये कोशिशें नाकाम होंगी।'
आरजेडी पहले से ही हेमंत सोरेन के साथ है। उसके एकमात्र विधायक हेमंत सरकार में मंत्री हैं। लिहाज़ा, हेमंत सोरेन को गठबंधन दलों से कोई चुनौती मिलती नहीं दिखती।
विपक्षी खेमे की रणनीति
विपक्षी बीजेपी इस मौके को भुनाना चाहती है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी कई दफ़ा पहले भी हेमंत सोरेन सरकार को बर्ख़ास्त करने की मांग कर चुके हैं। उन्होंने ईडी को भी शीघ्र कार्रवाई करने की सलाह दी थी। अब उन्होंने कहा है कि उनकी पार्टी कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिशों का विरोध करेगी। हालांकि, वे राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग नहीं करेंगे।
बाबूलाल मरांडी ने दुमका में कहा, 'मैं राज्यपाल से मांग करता हूं कि अगर मुख्यमंत्री की ओर से सरकार बदलने या बनाने का कोई प्रस्ताव आता है, तो वे अटार्नी जनरल या विधि विशेषज्ञों से परामर्श कर सकते हैं। ऐसा कर संवैधानिक संस्थाओं को बचाया जा सकता है, नहीं तो राज्य मजाक बनकर रह जाएगा। हम जल्दी ही गवर्नर से मिलकर अपनी बात रखेंगे।'
वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने बीबीसी से कहा कि बीजेपी के नेता पहले से ही हेमंत सोरेन की सरकार के ख़िलाफ़ मुखर रहे हैं। वे उनपर ईडी की पूछताछ से बचने और भ्रष्टाचार के आरोप लगाते रहे हैं। ऐसे में वे इस मौके को क्यों छोड़ेगे। बाबूलाल मरांडी के हालिया बयानों को उसी तौर पर लिया जाना चाहिए।'
झारखंड के राज्यपाल सी पी राधाकृष्णन फ़िलहाल अपने गृह राज्य तमिलनाडु में हैं। उनके आठ जनवरी को रांची लौटने की संभावना है। ऐसे में अगर सत्तारूढ़ गठबंधन ने 3 जनवरी की बैठक में कोई बड़ा निर्णय लिया, तो राज्यपाल के नाम का पत्र उनके कार्यालय को रिसीव कराना होगा।(फोटो सौजन्य : रवि प्रकाश, बीबीसी)