धरती क्‍यों बनी आग की भट्टी, दुनिया में 50 करोड़ लोग होंगे प्रभावित, हर साल 4.5% गिरेगी भारत की GDP

नवीन रांगियाल
Heat wave in the world: क्या हो अगर आपके सामने लोहे की सलाखें पिघलकर रिसने लगें, या सड़कों का डामर पिघलकर लिक्विड बन जाए। पेड़ों पर बैठे पक्षी मर कर जमीन पर गिरने लगे। सड़कें इतनी गर्म हो जाएं कि ऑमलेट बनाने के वीडियो आने लगे। पारे से सुलगती रेत पर पापड़ सैंकने के वीडियो सामने आने लगे। हकीकत यह है कि इस गर्मी में यह सब हो रहा है। भारत के राजस्‍थान, महाराष्‍ट्र, दिल्‍ली, मध्‍यप्रदेश, यूपी और बिहार समेत कई राज्‍य धरती की इस भट्टी में झुलस रहे है। कई शहरों में तापमान 45 और 50 डिग्री सेल्‍सियस को पार कर गया है।

इस तापमान की भयावहता का आलम यह है कि अब लोग भी गर्मी से मरने लगे हैं। कई राज्‍यों में लोगें के शरीर का टेंपरेचर 100 के पार हो रहा है। राजधानी दिल्‍ली में एक शख्‍स के शरीर का टेंपरेचर 107 डिग्री पहुंचा, जिसके बाद हीट स्ट्रोक से उसकी मौत हो गई। दरसअल, हकीकत यह है कि सिर्फ भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए तापमान एक ‘नया खतरा’ है और धरती ‘आग की भट्टी’ बन रही है। दरअसल, दुनिया के तापमान (वैश्विक तापमान) में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। वैज्ञानिक कई बार ये चेतावनी दे चुके हैं कि धरती का पारा बढ़ रहा है।

अप्रैल और मई 2024 में कई हफ्तों तक घातक गर्मी की लहर ने एशिया के बड़े क्षेत्रों को जकड़ रखा है। 7 मई को भारत में तापमान 110 डिग्री फ़ारेनहाइट (43.3 सेल्सियस) से अधिक था और इस भीषण गर्मी में बच्‍चों से लेकर बुजुर्गों तक सब को बेहाल कर रखा है।

यूके, यूरोप से लेकर चीन तक के हालात

जापान से लेकर दक्षिण में फिलीपींस तक लगातार गर्मी ने रोजमर्रा की जिंदगी पर कहर बरपा रही है। कंबोडिया में छात्रों और शिक्षकों को स्कूलों से घर भेजा जा रहा है। थाईलैंड में किसानों के फसलें सूख रही हैं, धूप से हजारों पशुओं की मौत हो गई। 2023 में दक्षिण-पश्चिमी अमेरिका में एक सप्ताह तक चली गर्मी की लहर को फीनिक्स में ‘पृथ्वी पर नर्क’ के तौर पर दिखाया गया। जहां तापमान लगातार 31 दिनों तक 110 एफ (43.3 सी) या इससे ज्‍यादा रहा। यूरोप भी भभक रहा है। ग्रीस के जंगलों में आ लगी है। बता दें कि कुछ देशों में सिर्फ दो या तीन हफ्ते ज्यादा गर्मी पड़ी। वहीं कोलंबिया, इंडोनेशिया और रवांडा जैसे देशों में 120 दिन से भी ज्यादा गर्मी पड़ी। रिपोर्ट कहती है कि इंसानों ने प्रकृति पर बहुत ज्‍यादा बोझ डाल दिया है। दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में 120 दिनों की अतिरिक्त गर्मी सिर्फ जलवायु परिवर्तन के कारण ही थी।

मानव स्‍वास्‍थ्‍य के लिए कितना खतरा क्‍या होगा बुजुर्गों का : बता दें कि दुनिया भर में जनसंख्या बूढ़ी हो रही है। 2050 तक 60 साल और उससे ज्‍यादा उम्र के लोगों की संख्या दोगुनी होकर करीब 2.1 अरब हो जाएगी, जो वैश्विक जनसंख्या का 21 प्रतिशत है। रिसर्च बताती है कि 2050 तक 69 वर्ष और उससे अधिक उम्र की दुनिया की 23 प्रतिशत से अधिक आबादी उन क्षेत्रों में रह रही होगी, जहां तापमान नियमित रूप से 99.5 डिग्री फ़ारेनहाइट (37.5 डिग्री सेल्सियस) से ज्‍यादा होता है, जबकि आज यह सिर्फ 14 प्रतिशत है। इसका मतलब है कि लगभग 25 करोड़ वृद्ध खतरनाक रूप से हाई टेंपरेंचर से हलाकान होंगे।

क्या कहती है IPCC की रिपोर्ट : इस बढ़ती गर्मी में संयुक्त राष्ट्र की IPCC की रिपोर्ट का जिक्र भी जरूरी है। यह रिपोर्ट लंबे समय की रिसर्च के बाद सामने आई थी। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के साथ ही IPCC (Intergovernmental Panel on Climate Change) की जो रिपोर्ट आई थी। रिपोर्ट के मुताबिक उत्सर्जन के आधार पर हम करीब 10 से 20 साल में तापमान के मामले में 1.5 डिग्री की बढ़ोतरी पर पहुंच जाएंगे। यह भारत के लिए खतरनाक है, क्योंकि गर्मी बढ़ने से भारत के 50% हिस्से और ऐसे लोगों पर भारी प्रभाव पड़ेगा, जिनका जीवनयापन सीधेतौर पर पर्यावरण पर निर्भर करता है।

2 हजार साल में पहली बार : विशेषज्ञों का दावा है कि इस गति से गर्मी बढ़ना मानव जाति के इतिहास में 2000 साल में पहली बार देखा गया है। इससे भारत के लोगों पर भारी असर होगा, खासकर ऐसे 40 करोड़ लोगों पर जिनका रोजगार पर्यावरण या इसी तरह के संसाधनों चलता है। जबकि दुनिया की 90 फीसदी आबादी पर असर होगा। ये आबादी अत्याधिक गर्मी और सूखे से जुड़े खतरों का सामना करेगी।

234 वैज्ञानिकों की रिपोर्ट में क्या है : वैज्ञानिकों ने 3 हजार से ज्‍यादा पन्नों की रिपोर्ट तैयार की है। इसे दुनिया के 234 वैज्ञानिकों ने तैयार किया है। जिसमें कहा गया है कि तापमान से समुद्र स्तर बढ़ रहा है, बर्फ का दायरा सिकुड़ रहा है और प्रचंड लू, सूखा, बाढ़ और तूफान की घटनाएं बढ़ रही हैं। ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात और मजबूत और बारिश वाले हो रहे हैं, जबकि आर्कटिक समुद्र में गर्मियों में बर्फ पिघल रही है और इस क्षेत्र में हमेशा जमी रहने वाली बर्फ का दायरा घट रहा है।

ताजा रिपोर्ट कहती है कि मध्य, पूर्व और उत्तर-पश्चिम भारत के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से अधिक लू चलने के आसार हैं। 2023 में भारत ने 1901 में रिकॉर्ड रखना शुरू होने के बाद से फरवरी सबसे गर्म रहा।

क्‍या होगा भारत पर असर : मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि लू की घटनाएं अगर ऐसे ही चलती रही तो 2030 तक देश को अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2.5 से 4.5 प्रतिशत प्रति वर्ष का नुकसान हो सकता है। मार्च 2022 अब तक का सबसे गर्म और 121 वर्षों में तीसरा सबसे सूखा वर्ष था। इस वर्ष में 1901 के बाद से देश का तीसरा सबसे गर्म अप्रैल भी रहा। भारत में लगभग 75 प्रतिशत श्रमिक या लगभग 38 करोड़ लोगों को गर्मी की वजह से तनाव हुआ। यह स्‍टडी पीएलओएस क्लाइमेट नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई है।

भारत-पाकिस्तान, बांग्लादेश झेलेगा सबसे ज्‍यादा मार : World Meteorological Organization- WMO की ही रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में हो रहे जलवायु परिवर्तन और बढ़ रहे तापमान का सबसे बुरा असर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश पर होगा। भारत के कई हिस्सों में लू (Heat wave) तो पिछले कुछ सालों में बहुत ज्यादा देखी गई है। आबादी के मान से भी भारत पर ज्यादा असर होगा। यहां गर्मी (Heat wave) से मरने वालों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। कुल मिलाकर WMO की रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन का सबसे भारी नुकसान भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश झेलेगा।

NASA क्‍यों है दहशत में : विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organisation - WMO) के छह मुख्य अंतरराष्ट्रीय तापमान डेटासेट के मुताबिक पिछले 8 साल दुनियाभर के रिकॉर्ड पर सबसे गर्म थे। यह लगातार बढ़ती ग्रीनहाउस गैस की मात्रा और इससे होने वाली गर्मी की वजह से था। इसका मतलब यह है कि 2022 में पृथ्वी 19वीं सदी के अंत के औसत से लगभग 1.11 डिग्री सेल्सियस गर्म थी। यही वजह है कि नासा (NASA) ने भी दुनिया पर आने वाले इस नए खतरे को लेकर डर जाहिर किया है। World Meteorological Organisation – WMO की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है।

200 देश ‘क्लाइमेट चेंज’ से लड़ रहे युद्ध : साल 2015 में पेरिस जलवायु समझौता हुआ था, जिसमें 200 देशों ने इस ऐतिहासिक जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, इस समझौते का मकसद था दुनिया में हो रही तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस (3.6 डिग्री फारेनहाइट) से कम रखना। इसके साथ ही यह तय करना कि यह पूर्व औद्योगिक समय की तुलना में सदी के अंत तक 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 फारेनहाइट) से ज्यादा न हो। रिपोर्ट में शामिल 200 से ज्यादा लेखक पांच परिदृश्यों पर नजर बनाए हुए हैं और उनका मानना है कि किसी भी स्थिति में दुनिया 2030 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान के आंकड़े को पार कर लेगी। यह आशंका पुराने पूर्वानुमानों से काफी पहले है।

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