भारत में 2023 में बाल टीकाकरण कवरेज की रफ़्तार हुई धीमी

UN

सोमवार, 15 जुलाई 2024 (14:40 IST)
File Photo
भारत के टीकाकरण कार्यक्रम के तहत सालाना लगभग 2 करोड़ 70 लाख नवजात शिशुओं का टीकाकरण किया जाता है। विश्व भर में बच्चों की प्रतिरक्षण कवरेज वर्ष 2023 में अवरुद्ध हो गई है, जिसके कारण बड़ी संख्या में बच्चे जीवनरक्षा कवच के दायरे से बाहर हो गए हैं। यूएन एजेंसियों के एक नए विश्लेषण के अनुसार, कोविड-19 महामारी से पहले 2019 की तुलना में 27 लाख अतिरिक्त बच्चों का या तो टीकाकरण नहीं हो पाया या फिर उनकी ख़ुराकें पूरी नहीं हो पाई है।

New data reveal nearly 3 in 4 infants live in countries where low vaccine coverage is driving measles outbreaks. @WHO https://t.co/bbpKmlPIed

— UNICEF (@UNICEF) July 15, 2024
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) ने 14 बीमारियों के विरुद्ध टीकाकरण के रुझानों पर अपने नए विश्लेषण में यह निष्कर्ष साझा किया है, जिसके मद्देनज़र यूएन एजेंसियों ने हालात में बेहतरी के लिए तत्काल टीकाकरण प्रयासों में तेज़ी लाने पर बल दिया है।

यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसैल ने कहा, “नवीनमत रुझान दर्शाते हैं कि अनेक देशों में अब भी कईं बच्चे छूटते जा रहे हैं”

उन्होंने बताया कि प्रतिरक्षण खाई को पाटने के लिए एक वैश्विक प्रयास की आवश्यकता होगी, जिसमें सरकारों, साझेदारों और स्थानीय नेताओं को प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल व सामुदायिक कर्मचारियों में निवेश करना होगा।हर बच्चे को टीकाकरण के दायरे में लाने और स्वास्थ्य देखभाल को बेहतर बनाने के लिए यह ज़रूरी है।

यूएन एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार 2023 में डिप्थीरिया, टेटनेस और पर्टूसिस (DTP) से बचाव के लिए वैक्सीन की तीन ख़ुराक पाने वाले बच्चों की संख्या 10.8 करोड़ (84 प्रतिशत) पर अवरुद्ध हो गई। वैश्विक प्रतिरक्षण कवरेज प्रयासों को दर्शाने के लिए ये वैक्सीन एक अहम संकेतक है।

जिन बच्चों को वैक्सीन की एक भी ख़ुराक नहीं मिल पाई, उनकी संख्या 2022 में 1.39 करोड़ थी, मगर 2023 में यह बढ़कर 1.45 करोड़ पहुंच गई।

जिन बच्चों का टीकाकरण नहीं हो पाया है, उनमें से 50 फ़ीसदी से अधिक उन 31 देशों में रहते हैं, जहां हालात नाज़ुक हैं, हिंसक टकराव से प्रभावित हैं या फिर सम्वेदनशील हालात से जूझ रहे हैं।

ऐसे देशों में बच्चों पर ऐसी बीमारियों की चपेट में आने का जोखिम है, जिनकी आसानी से रोकथाम की जा सकती है। मगर, सुरक्षा, पोषण व स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में व्यवधान आने से यह कठिन हो जाता है। इसके अलावा, 65 बच्चों को डीटीपी वैक्सीन की तीसरी ख़ुराक नहीं मिल पाई, जोकि आरम्भिक बचपन में बीमारियों से बचाने के लिए आवश्यक है।

ये रुझान दर्शाते हैं कि वैश्विक प्रतिरक्षण कवरेज वर्ष 2022 के बाद से अब तक अवरुद्ध है और 2019 के स्तर तक नहीं लौट पाई है, जिसकी वजह स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवधान, लॉजिस्टिक सम्बन्धी चुनौतियां, वैक्सीन के प्रति हिचकिचाहट और टीकाकरण में पसरी विषमताएं हैं।

ख़सरे का प्रकोप : विश्लेषण के अनुसार घातक ख़सरा बीमारी के विरुद्ध टीकाकरण की दर भी ठहर गई है और साढ़े तीन करोड़ बच्चों के पास ज़रूरी सुरक्षा कवच उपलब्ध नहीं है।

2023 में केवल 83 प्रतिशत बच्चों को नियमित स्वास्थ्य सेवाओं के ज़रिये ख़सरा की पहली ख़ुराक मिल पाई। वहीं दूसरी ख़ुराक पाने वाले बच्चों की संख्या में 2022 की तुलना में मामूली वृद्धि हुई और यह 74 प्रतिशत तक पहुंची।

ख़सरा के प्रकोप को टालने, अनावश्यक बीमारियों व मौतों से बचने और ख़सरा उन्मूलन लक्ष्य को हासिल करने के लिए निर्धारित 95 प्रतिशत टीकाकरण कवरेज के लक्ष्य से यह कम है।

पिछले पांच वर्षों में 103 देशों में ख़सरा की बीमारी फैली है। इन देशों में कुल नवजात शिशुओं की तीन-चौथाई आबादी बसती है। वैक्सीन कवरेज का कम होना (80 प्रतिशत या कम) इसकी एक बड़ी वजह थी। इसके विपरीत जिन 91 देशों में ख़सरा टीकाकरण की व्यवस्था मज़बूत थी, वहां इसका प्रकोप देखने को नहीं मिला।

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी